कालीबंगन (KALIBANGAN)


कालीबंगन (KALIBANGAN)

KALIBANGAN  MAP
राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित कालीबंगा स्थान पर उत्खनन द्वारा 1961ई. के मध्य किए गए 26 फ़िट ऊँची पश्चिमी टीले से प्राप्त अवशेषों से विदित होता है कि आकार में कालीबंगन हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो के बाद था। लेकिन इसके छोटे आकार के बावजूद इस पूर्व हड़प्पा संस्तर का बेहतरीन परिरक्षण अत्यंत रोचक है। इसके कारण कालीबंगन पूर्व हड़प्पा और प्रारंभिक हड़प्पा से परिपक्व हड़प्पा चरण के संक्रमण की परिस्थितियों का महत्त्वपूर्ण साक्षी है।

प्राचीन कालीबंगन की स्थापना लगभग 2400 ई०पू० के आस-पास हुई। इसके कुछ प्रमुख लक्षण बाद में सिंधु सभ्यता के शहरों में मानक बन गए। उदाहरणार्थ, यह एक आयताकार सुनियोजित शहर था जो लगभग 750 फीट लंबा तथा उत्तर-दक्षिण अक्ष पर बसा हुआ है। शहर की किलाबंदी की गई थी तथा मकान 10×20×30 से.मी. की पक्की ईंटों के बने हुए थे। जल निकास प्रणाली पक्की ईंटों की बनी हुई थी। यहां के बर्तन चाक के बने हुए उच्च कोटि के बर्तन थे जिनको सुन्दर ढंग से सजाया गया था तथा ये बाद के कालों से बिल्कुल अलग थे।
लगभग 2250 ई०पू० के आसपास, जब हड़प्पा सभ्यता का विस्तार हो रहा था, अज्ञात कारणों से प्राचीन कालीबंगन को त्याग दिया गया। लगभग 50 से 100 वर्षों बाद उसका पुनर्निर्माण हडप्पा एवं मोहनजोदड़ो की पद्धति पर हुआ। पहली बार नगर दुर्गं एवं निम्न शहर में अब स्पष्ट अंतर देखने को मिला। नगर दुर्ग प्राचीन कालीबंगन के अवशेषों पर बना था तथा निम्न शहर नगर, दुर्ग से लगभग 120 फीट की दूरी पर बसा था। निम्न शहर प्राचीन कालीबंगन से चार गुना बड़ा था तथा मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा के निम्न शहरों के योजनानुसार बना था। नए कालीबंगन में मानकीकरण के स्तर अत्यंत कठोर थे; महत्त्व की सापेक्ष विभिन्न सड़कें 12,18, या 24 फीट चौड़ी थीं। प्राचीन कालीबंगन में जो ईटें विशिष्टताओं के साथ बनाई जाती थीं, वे अब हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो के अनुरूप बनने लगीं। नए कालीबंगन की एक खास विशेषता थी कि वहां निम्न शहर से लगभग 240 मीटर दूर एक प्राकृतिक टीला था। इस टीले पर सिर्फ अग्नि वेदियों के अवशेष हैं।
AGNI VEDI KALIBANGAN
यह संभवतः निम्न शहर के लोगों का धार्मिक स्थल था। जब कि नगर दुर्ग के दो चबूतरों की अग्निवेदियां वहां के निवासियों के लिए थीं। कालीबंगन में मातृदेवियों की मूर्ति की अनुपस्थिति वहां की प्रमुख विशेषता है क्योंकि ये देवियां सिंधु सभ्यता के बाकी अन्य केन्द्रों में बहुतायत में प्राप्त हुई हैं।


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