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पाषाण युग

पाषाण युग पाषाण युग   इतिहास   का वह काल है जब मानव का जीवन पत्थरों पर अत्यधिक आश्रित था | मानव इतिहास के प्रारंभिक दिनों की जानकारी हमें उनके द्वारा छोड़ी गई चीजों के अवशेषों के आधार पर करनी पड़ती है , जो आज भी उपस्थित हैं और यह अधिक विकसित अवस्था से थोड़ा भिन्न क्योंकि वहां अनेको प्रकार के स्त्रोत उपलब्ध हैं। जब पुरातत्वविद् तथा इतिहासकार प्रागैतिहासिक अवस्थाओं का जिक्र करते हैं तो इस बात को बताते हैं कि उस समय मनुष्य मुख्यतः आखेटक और खाद्य संग्राहक था या अभी हाल ही में उसने स्थिर जीवन व्यतीत करना शुरू किया था। हमें उस समय का कोई लिखित लेखा-जोखा नहीं मिलता है। इस युग में मनुष्यों को लगातार प्रकृति से समझौता करना पड़ता था। उपलब्ध संसाधानों के अनुरूप ही उनकी जीवन शैली बन गई थी। इसी के अनुसार उन्होंने औजारों का इस्तेमाल किया , अपने निवास-स्थान को चुना तथा उसी के अनुरूप उनके सामाजिक जीवन और विश्वास-आस्था इत्यादि का जन्म हुआ। इस युग के अवशेष ज्यादातर पत्थर के औजार ही है जो कभी-कभी पशुओं के फॉसिल के साथ मिले हैं। किंतु ये इनकी जीवन पद्धति पर ज्यादा प्रकाश नहीं डालते |...

इतिहास का प्रारम्भ

इतिहास का प्रारम्भ भारत   में   युगो   की   अवस्था और उसका   निर्धारण अवस्थाओं   के   निर्धारण   का   आधार भारत में मानव के अस्तित्व की पहचान को प्राप्त सूचनाओं के आधार पर 3,00,000 से 2,00,000 ई० पू० के बीच रखा जा सकता है। सोन घाटी तथा दक्षिणी भारत में बहुतायत में पाए गए प्राचीनतम् पत्थर के औजारों के अध्ययन के आधार पर यह बात कही गई है। लगभग   36 , 000   ई०पू० आधुनिक मानव ( होमो स्पेनिश ) पहली बार अवतरित हुआ। आदिम मानव 8,000 ई० पू० तक , पुरापाषाण युग में पत्थर के अनगढ़ तथा अपरिष्कृत औजारों का इस्तेमाल करता था। इस युग का मानव शिकार तथा खाद्य-संग्रह पर जीता था और प्रकृति पर पूरी तरह निर्भर था। उसने आग पर नियंत्रण करना सीखा,  जिससे  उसके जीवन स्तर में काफी उन्नति हुई |  करीब 8,000 ई०पू० से मध्यपाषण युग शुरू हुआ जो 4,000   ई०पू० तक बना रहा। इस युग में तेज तथा नुकीले औजारों का प्रयोग तेज भागने वाले पशुओं को मारने में किया गया। छोटानागपु...